बीच सिटी में मकान खोजना भूसे के ढेर से सुई निकालने से भी हुआ मुश्किल
मकानों की बढ़ा डिमांड ने किराए को पहुंचाया सातवें आसमान पर, लोगों की अतिरिक्त आय में हुआ इजाफा
हां कुछ इसी तरह के वाक्यों से रू-ब-रू होना पड़ता है। शहर में आए नए किसी व्यक्ति को। शहर में एक कमरे का मकान किराए पर यदि किसी ने ले लिया तो समझ लो उसने भूसे के ढेर से सुई निकालने से भी बड़ा काम कर लिया।
वैसे आदिवासी, पिछड़ा और न जाने कितने अलंकारों से विभूषित सीधी का शहर रहवास के मामले में काफी रिच है।
शासकीय अथवा अशासकीय सेवा में स्थानांतरित होकर आने वाले कर्मचारी अथवा अन्य लोगों के दर्द को समझने के लिए दस दिन तक कलेक्ट्रेट, पुलिस लाइन, स्टेट बैंक, चौक चौराहे के इर्द-गिर्द डेढ़ किमी के दायरे में सिंगल मकान की तलाश की, लेकिन सफलता जितनी नजदीक दिखती पास जाने पर उतनी ही दूर चली जाती।
हालत यह है कि किराए का मकान खाली होने के साथ ही बुक हो जाता है। जहां मकान था भी तो वह आसमान छूते किराए पर था अथवा संसाधनहीन था। बहरहाल कुछ भी हो, लेकिन किराए के मकान की इस डिमांड ने शहर के अर्थचक्र को तेजी से आगे बढ़ा दिया है। शहर में छोटे से छोटा मकान अब किराएदारों की निगाह में रहता है और मकान मालिक को वह मुंहमांगा किराया देने के लिए तैयार रहता है।
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दुकानदारों के पास रहती है लिस्ट किसका मकान खाली है, कहां
किराएदार है, कितना किराया लेगा और कितने में मान जाएगा इसकी पूरी जानकारी गली, कूचे की दुकानदारों के पास होती है। मकान किराए पर दिलाने और खाली होने की पक्की सूची किराना, पान, चाय की दुकान के अलावा गोल गप्पे का ठेला लगाने वाले के पास रहती है। शहर के नब्बे फीसदी मकानों को किराए पर दिलाने में इनकी अहम भूमिका रहती हैं।
इनसे बढ़ी डिमांड
शहर में किराए के मकान की डिमांड कामुख्य कारण कालेज के छात्र-छात्राओं सहित स्कूली छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए गांव से लेकर मां आती है। इसके करीब बीस हजार से अधिक छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए शहर की ओर रुख अपना रहे हैं।
इसी तरह पुलिस विभाग के भी कर्मचारी बड़ी संख्या में किराए पर रहते हैं। इसके अलावा जिला अस्पताल की स्टाफ नर्स व पैरामेडिकल कालेज में पढ़ने वाली स्टूडेंट भी किराए पर रह रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक सभी संस्था व निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले करीब दस हजार लोग किराए पर शहर में रहते हैं