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22 हफ्ते तक का गर्भ तो पुलिस, डॉक्टर दुष्कर्म पीड़िता को बताएं कि सीधे गर्भपात करवा सकते हैं

हाई कोर्ट का प्रदेश के सभी टीआई को आदेश, पालन नहीं होने पर अवमानना मानी जाएगी

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हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने ज्यादती के बाद गर्भवती होने वाली नाबालिग और बालिग युवतियों के गर्भपात कराए जाने के मामले में महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। हाई कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति दिए जाने के एक मामले में फैसला देते हुए कहा है कि संबंधित पुलिस थाना के प्रभारी, जांच अधिकारी और उस पीड़िता का उपचार कर रहे सरकारी डॉक्टर की जिम्मेदारी है कि वह पीड़िता या उसके परिजन को लिखकर दें कि वह सीधे गर्भपात करवा सकते हैं।

 

22 सप्ताह से कम के मामलों मे अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश की प्रति प्रदेश के सभी पुलिस स्टेशन पर भेजने के साथ ही यह भी लिखा है कि इस आदेश का पालन नहीं होने पर संबंधित जांच अधिकारी, डॉक्टर के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने यह फैसला जारी किया है। एक नाबालिग से ज्यादती की गई थी। जांच के वक्त उसके परिजन को नहीं बताया गया कि बेटी को 14 सप्ताह का गर्भ है। 22 सप्ताह का होने के बाद गर्भ होने की जानकारी दी गई। इस पर परिजन ने गर्भपात की अनुमति कोर्ट से मांगी। मेडिकल बोर्ड ने जवाब दिया कि बच्ची का हीमोग्लोबिन बहुत कम है। जान का

 

म.प्र. उच्च न्यायालय

 

खतरा हो सकता है। हीमोग्लोबिन बढ़ने के बाद ही गर्भपात किया जा सकता है। हीमोग्लोबिन बढ़ने के बाद टर्मिनेशन किया गया। उल्लेखनीय है कि नाबालिगों से ज्यादती के बाद उनके गर्भवती हो जाने पर समय पर गर्भपात नहीं हो पाता है। सरकारी डॉक्टर, जांच अधिकारी कोर्ट से अनुमति लाने के लिए कहते हैं। ऐसे में कई बार 22 सप्ताह या उससे अधिक का समय भी हो जाता है। बच्चियों और उनके परिजन को मानसिक परेशानी झेलना पड़ती है।

 

कोर्ट ने लिखाः बच्ची का भविष्य बचाना उनकी जिम्मेदारी

 

हाई कोर्ट ने फैसले में लिखा कि ज्यादातर रेप के मामले ग्रामीण क्षेत्र, दूर-दराज के इलाकों में होते हैं। पीड़िता या परिजन को एमटीपी एक्ट की जानकारी भी नहीं होती है। ऐसे में जांच अधिकारी और डॉक्टर की जिम्मेदारी बनती है कि उन्हें 22 सप्ताह से कम का गर्भ होने पर टर्मिनेशन के लिए लिखकर दें ताकि बच्ची का भविष्य बच सके और जीवनभर उसे मानसिक परेशानी ना रहे।

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