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पानी की तलाश में गांवों में पहुंच रहे वन्य जीव,वन क्षेत्रों में पानी की नहीं बनाई गई व्यवस्था 

वन क्षेत्रों से लगे रिहायशी क्षेत्रों में बढ़ रहा खतरा 

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पानी की तलाश में गांवों में पहुंच रहे वन्य जीव 

वन क्षेत्रों में पानी की नहीं बनाई गई व्यवस्था 

वन क्षेत्रों से लगे रिहायशी क्षेत्रों में बढ़ रहा खतरा 

 

गर्मी की तपिस दिनोंदिन तेज होने से पहाड़ी क्षेत्रों में जल संकट भी गहराने लगा है। वर्तमान में सीधी जिले का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के पास पहुंच रहा है। नदी व तालाबों में पानी घटने लगा है। सबसे ज्यादा समस्याएं वन क्षेत्रों में हो रही है। यहां के प्राकृतिक जल स्त्रोत तेजी से सूखना शुरू हो गए हैं। ऐसे में वन्य जीव पानी की तलाश में समीपी रिहायशी क्षेत्रों में पहुंचना शुरू कर दिए हैं।

यह अवश्य है कि अभी दिन के समय वन्य जीव रिहायशी क्षेत्रों में जाने से दूरी बनाए हुए हैं शाम ढलने के बाद वह पानी की तलाश में गांव की ओर पहुंचना शुरू कर देते हैं। बताते चले कि सीधी जिले में अधिकांश वन क्षेत्र काफी सिमट चुके हैं, इस वजह से इनमें रहने वाले छोटे वन्य जीव ही गांव के आसपास मडऱाते हैं। बड़े वन क्षेत्र संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र है।

रिजर्व क्षेत्र में जल स्त्रोतों की संख्या काफी ज्यादा होने के कारण यहां पानी को लेकर वन्य जीवों में अभी कोई समस्या नहीं है। संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र के अलावा जो वन क्षेत्र वन मंडल सीधी में है उनमें जल संकट की स्थिति तेजी के साथ गहराने लगी है। अधिकांश वन क्षेत्र ऐसेे हैं जहां काफी कम जल स्त्रोत हैं। ऐसे में यहां रहने वाले वन्य जीवों को अब जल स्त्रोतों के सूखने के कारण प्यास बुझाने के लिए गांवों की ओर आने की मजबूरी निर्मित हो गई है।

चर्चा के दौरान कुबरी, अमरपुर क्षेत्र के कुछ ग्रामीणों ने बताया कि उनके यहां पानी की तलाश में छोटे वन्य जीव रात मेंं घूमते हुए दिखाई दे रहे हैं। गर्मी के पूर्व वन्य जीवों के आने का क्रम ग्रामीण क्षेत्रों में काफी कम था जो वन्य जीव आते भी थे तो वह केवल खेतों में फसलों को ही नुकसान पहुंचाते थे। अब स्थिति यह होने लगी है कि वन्य जीव अपनी प्यास बुझाने के लिए गांवों में पहुंचना शुरू कर दिए हैं। जिसके चलते यह भी खतरा मडऱा रहा है कि कभी कोई वन्य जीव इंसानों के ऊपर हमला न कर दे।

ग्रामीणों का कहना था कि गर्मी और बढऩे के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में काफी संख्या में लोग रात में घर के बाहर ही सोते हैं। यदि वन्य जीवों के रात में आने का क्रम बना रहा तो इससे बड़ा खतरा भी हो सकता है। ऐसे में वन मंडल सीधी के पहाड़ी क्षेत्रों में वन्य जीवों के लिए पानी के इंतजाम सुनिश्चित कराना चाहिए। इसके लिए वन क्षेत्रों में जगह-जगह गड्ढे खुदवाकर उसमें पानी भराया जाय। वन मंडल द्वारा गर्मी के दिनों में पूर्व में टैंकरों के माध्यम से वन क्षेत्रों में बनाए गए गड्ढों में पानी डालने का काम किया जाता था।

इस वर्ष वन्य क्षेत्रों में वन्य जीवो ंके लिए पानी के इंतजाम बनाने को लेकर काफी सुस्ती देखी जा रही है। ग्रामीणों का कहना था कि विगत दो वर्ष से इसी तरह की लापरवाही वन मंडल की ओर से की जा रही है। यह अवश्य है कि उन दिनों कोरोना का कहर शुरू होने से लोग भी अपने घरों से कम ही निकलते थे। अब कोरोना का खतरा बंद होने के बाद लोग निर्वाध रूप से बाजारों से भी काफी रात में अपने घर लौटते हैं।

ऐसे में पानी की तलाश में भटकने वाले कई छोटे वन्य जीव रास्तों में भी विचरण करते हुए नजर आ रहे हैं। वन्य जीवों के लिए पानी की व्यवस्था बनाना काफी अहम माना जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि जिस तरह से गर्मी की विभीषिका बढ़ रही है ऐसे में इंसानों के समक्ष भी आने वाले दिनों में जल संकट गहराने के आसार हैं।

नदियों में कमजोर हो रही धार

वन क्षेत्रों के आसपास मौजूद नदियों में भी पानी की धार तेजी से कमजोर हो रही है। कुछ स्थानों में तो नदियों में जल का प्रवाह पूरी तरह से थम गया है। ऐसे नदियों का पानी गर्मी की विभिषिका बढऩे के बाद तेजी के साथ सूखना भी शुरू हो जाएगा। यह माना जा रहा है कि अप्रैल महीने के दूसरे सप्ताह के बाद अधिकांश नदियों का जल स्तर काफी कम हो जाएगा।

उस दौरान मवेशियों को भी पानी के लिए भटकना पड़ेगा। दरअसल जिले में आवारा मवेशियों की संख्या भी लाखों में है। आवारा मवेशी पानी की तलाश के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में नदियों एवं तालाबों के आसपास ही पहुंचते हैं। गर्मी की प्रचण्डता के चलते नदियों एवं तालाबों का पानी जब तेजी के साथ सूखेगा उस दौरान आवारा मवेशियों के सामने भी बड़ा जल संकट खड़ा हो जाएगा। अभी आवारा मवेशियों की मौजूदगी बस्ती के समीप होने से उन्हे ज्यादा दिक्कतें नहीं है।

देखे जा रहे पग चिन्ह

वन क्षेत्रों से लगे कई गांवों में कुछ दिनों से ग्रामीणों को वन्य जीवों के पग चिन्ह अपने घर के आसपास दिख रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हंै कि रात के वक्त पानी की तलाश में वन्य जीव घरों के आसपास अपनी आमद बनाए रहते हैं।

यह अवश्य है कि वन मंडल के वन परिक्षेत्रों के जंगलों में बड़े वन्य जीवों की उपस्थिति काफी कम है। फिर भी यदि हिंसक वन्य जीव गांवों में रात के दौरान अपनी मौजूदगी बनाए रखेंगे तो कभी भी इससे बड़ा हादसा हो सकता है। अधिकांश वन क्षेत्रों में बंदरों के झुंड ही ज्यादा संख्या में मौजूद हैं। इसके अलावा सियार, जंगली सुअर, भालू, चीतल, लकड़बग्घा की संख्या भी अधिकांश जंगलों में मौजूद है। इनमें कई वन्य जीव हिंसक प्रजाति के माने जाते हैं। जिसके चलते बच्चों को इनसे सबसे ज्यादा खतरा माना जाता है। इसी वजह से ग्रामीणों में बेचैनी देखी जा रही है।

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