मौत को मुट्ठी में भींचने का शगल

दूसरों को बचाने के लिए खुद की जिंदगी दाँव पर लगा देते हैं सर्पमित्र जब रेस्क्यू करके आते तो बच्चे छाती से लिपटकर बोलते हैं... पापा तुम सॉप पकड़ना छोड़ दो.

सर्पमित्र जब कोई रेस्क्यू करके घर लौटते तो बच्चे छाती से लिपट जाते, पत्नी सहमी आँखों से कुशलक्षेम जानने का प्रयास करने लगती। फिर पापा कहते-अरे कुछ नहीं, 6 फीट का साँप था, पकड़ा और जंगल में छोड़ आया। सवाल यह कि जिंदगी को दाँव पर लगाने के बदले में मिला क्या, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। दूसरों को बचाने के लिए खुद की जिंदगी को दाँव पर लगाने वालों की उम्मीदें टूट चुकी हैं, अब तो बच्चे भी बोलने लगे हैं-पापा, तुम साँप पकड़ना छोड़ दो। बेबसी के आलम में मौत को मुट्ठी में भींचने का शगल परिवार की खुशियों के लिए ‘आत्मघाती’ साबित होने लगा है। साँप कितना भी जहरीला हो, सर्पमित्र जरा भी नहीं घबराते।

 

यह नहीं सोचते कि साँप का एक वार उसे मौत की नींद सुला सकता है। वे अपनी जान को दाँव पर लगाकर किसी तरह साँप को पकड़ते हैं और फिर वन्य क्षेत्र में छोड़ आते हैं। सीधी का भौगोलिक परिवेश साँपों की विभिन्न प्रजातियों का पोषक बनता जा रहा है। यहाँ पर अजगर, कोबरा, करैत से लेकर सेंड बोआ प्रजाति के साँप तक मिलते हैं। शहर में जहाँ कहीं भी साँप निकलते हैं तो लोग वन विभाग सहित सर्प मित्रों को याद करते हैं।

 

न मानदेय मिलता है, न बीमा होता है

 

वन विभाग द्वारा हर साल नागपंचमी पर सपेरों के खिलाफ धरपकड़ अभियान चलाने के लिए सर्प मित्रों का सहयोग लियाजाता था, लेकिन इसके बदले में न तो सर्प मित्रों को समुचित पारितोषिक दिया जाता है, और न ही कोई स सुरक्षाकर्मी साथ में रहता है, और न ही सर्चिग अभियान में प्रयोग होने वाले वाहन का पेट्रोल दिया जाता है। प्राकृतिक जीवों को बचाने में दिन-रात मेहनत करने वाले सर्प मित्रों का जीवन भी खतरे में रहता है, लेकिन वन विभाग हो या नगर पालिका या फिर जनप्रतिनिधि किसी को भी इनसे कोई सरोकार नहीं रहता, बस काम पड़ा तो सर्पमित्रों का उपयोग कर लिया, बाकी शासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती।

 

प्रशिक्षण उपकरण के साथ प्रमाण पत्र मिले

 

जो भी जानकारी के साथ सुरक्षात्मक तरीके से सर्प पकड़ सके, वही सर्प विशेषज्ञ हो जाता है। वन विभाग को सर्पों या अन्य वन्य प्राणियों के रैस्क्यू के लिए बाकायदाप्रशिक्षण शिविर आयोजित कर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और प्रमाण पत्र जारी कर सुरक्षा उपकरण प्रदान कर मानदेय के आधार पर क्षेत्रीय स्तर पर सर्प विशेषज्ञ की नियुक्ति की जानी चाहिए, ताकि वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के महत्व को लोग समझें और जागरुक हों तथा संपेरों की संस्कृति पर विराम लग सके।

 

मानदेय मिले तो हमारा मनोबल भी बढ़े

 

वन्य प्राणियों की सुरक्षा करने वालों के लिए बीमा की बात उठी थी अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। वन्य प्राणियों को पकड़ने वाले अपनी रिस्क पर लोगों के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने किसी भी समय पहुँच जाते हैं, जिन्हें नगर पालिका, राजस्व, ग्राम और जिला पंचायत से मानदेय मिलना चाहिए, ताकि उनका मनोबल बढ़ा रहे।

 

 

दम तोड़ चुके हैं कई वन्य प्राणी

 

जागरूकता और जानकारी के अभाव में भी जीव जंतुओं की मौत हो जाती है। अक्सर वन्य प्राणियों को पकड़कर उन्हें ऐसी जगह पर छोड़ दिया जाता है, जहाँ न तो उन्हें भोजन मिल पाता है और न प्रजनन की क्रिया हो पाती है। उन्हें नई जगह के अनुकूल बनने में वक्त लगता है, तब तक उनकी मौत हो चुकी होती है। ऐसी परिस्थिति में अब तक कितने वन्य प्राणी जान गंवा चुके होंगे, कहना मुश्किल है।

 

कमतर उपकरण

 

वन विभाग की तरफ से जो उपकरण दिए जाते हैं, वो इतने बेहतर नहीं होते कि उनसे मगरमच्छ और अजगर जैसे बड़े जीवों को पकड़ा जा सके। जागरुकता की कमी के कारण कई वन्य जीवों की मौत हो जाती है। मगरमच्छ, साँप, गोह, गुहेरा, कबर बिज्जू आज की स्थिति में बहुत कम हैं। जंगल भी घटते जा रहे हैं। हर गर्मी में जंगल में लगने वाली आग से सबसे ज्यादा नुकसान पशु पक्षियों को है, इसलिए जंगल भी बढ़ने चाहिए।

 

जो जनता दे दे

वन्य प्राणियों को पकड़ने वालो को फॉरेस्ट वालों की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिलता। जनता जो दे देती हैं उसी में काम चला रहे हैं। उनके घर वाले भी किसी न किसी अनहोनी को लेकर चिंतित रहते हैं और साँपों को पकड़ने से मना करते हैं, इसके लिए फॉरेस्ट वालों को सर्प मित्रों के सहयोग हेतु बैठक करना चाहिए।

 

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