पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की सेवा में जुटे रहते हैं श्रमिक 

अकुशल श्रमिक काम किए बिना विभाग में पाते हैं वेतन 

पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की सेवा में जुटे रहते हैं श्रमिक 

अकुशल श्रमिक काम किए बिना विभाग में पाते हैं वेतन 

 

जिले में पीडब्ल्यूडी की सडक़ों एवं भवनों के संधारण व देखभाल के नाम पर काफी संख्या में कुशल व अकुशल श्रमिकों की नियुक्ति की गई है। हैरत की बात तो यह है कि नियुक्त अधिकांश श्रमिक नेताओं व अधिकारियों के यहां अर्दली का काम कर रहे हैं। सालों से ऐसे श्रमिकों की ड्यूटी सेवा कार्य में ही लगी हुई है। विभाग का बिना कोई काम किए ही इनको वेतन का भुगतान भी किया जा रहा है।

चर्चा के दौरान विभागीय सूत्रों का कहना है कि पीडब्ल्यूडी में दशकों से यह परंपरा रही है कि खास लोगों को बिना काम के ही वेतन देने के लिए उनका नाम श्रमिक के रूप में दर्ज कर लिया जाए। बीच में कड़ाई हो जाने की वजह से अब श्रमिको का नाम जोडऩा संभव नहीं रह गया है। फिर भी पुराने समय में ऐसे सैकड़ों श्रमिकों के नाम विभाग में दर्ज हैं जो कि विभागीय काम नहीं करते हैं। वर्तमान में भी ऐसे दर्जनों श्रमिक जिले में मौजूद हैं जो कि दूसरे जिलों के निवासी हैं और सालों से उनको बिना काम के ही हर महीने वेतन मिल रहा है।

विगत वर्षों में कई ऐसे श्रमिक सीनियरटी के आधार पर नियमित भी हो गए हैं और विभाग का बिना कोई काम किए हजारों का वेतन उठा रहे हैं। पीडब्ल्यूडी में श्रमिकों के फर्जीवाड़े की जानकारी अधिकारियों और नेताओं को है। इसी वजह से कई नेताओं के यहां विभाग के श्रमिक अर्दली के रूप में काम कर रहे हैं। विभागीय अधिकारी ऐसे श्रमिकों की ड्यूटी अपने पसंदीदा नेताओं के यहां लगा देते हैं। जिससे उन्हें मुफ्त का सेवा करने वाला मिल सके।

पीडब्ल्यूडी के सभी अधिकारियों के यहां श्रमिकों की ड्यूटी लगी हुई है। कुछ श्रमिक तो अधिकारियों के बंगले में काम कर रहे हैं तो कुछ उनके गृह ग्राम में भी जाकर काम कर रहे हैं। पीडब्ल्यूडी में श्रमिकों की संख्या काफी ज्यादा होने के कारण कुछ अन्य विभागों के अधिकारियों के यहां भी उनकी ड्यूटी बंगले में काम करने के लिए लग जाती है।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि दर्जनों ऐसे श्रमिक भी रिकार्ड में मौजूद हैं जो कि महीने में कभी कभार हस्ताक्षर करने के लिए आते हैं। शेष समय वह अपने गृह ग्राम में रह कर दूसरा काम कर रहे हैं। दरअसल पीडब्ल्यूडी में सालों पहले सीधी जिले में पदस्थ कुछ अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा अपने कम पढ़े-लिखे नात रिश्तेदारों का नाम भी श्रमिक के रूप में दर्ज करा लिए थे। ऐसे श्रमिकों का नाम पहुंच के चलते दर्ज था। इस वजह से वह केवल कभी-कभार आकर हस्ताक्षर कर देते हैं और हर महीने उनको घर बैठे ही हजारों की पगार मिल रही है।

श्रमिकों के काम की नहीं होती है निगरानी 

पीडब्ल्यूडी में कुशल एवं अर्धकुशल श्रमिकों की नियुक्ति कहां है एवं वह क्या काम कर रहे हैं इसकी जानकारी विभाग के बड़े अधिकारी लेने की जरूरत नहीं समझते। अधिकांश श्रमिक उपयंत्रियों के अधीन कार्यरत रहते हैं। उपयंत्री द्वारा जो जानकारी कागजों में भेज दी जाती है उसे ही सही माना जाता है। लंबे अरसे से पदस्थ उपयंंत्रियों की सांठ-गांठ के चलते श्रमिकों की ड्यूटी बेगारी के काम में लगाई जा रही है। विभाग का काम श्रमिकों के न रहने से प्रभावित हो रहा है। फिर भी इस पर भी विभागीय अधिकारी ध्यान देने की जरूरत नहीं समझते।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में अब विभाग का अधिकांश कार्य ठेकेदारों के माध्यम से होता है। इस वजह से विभागीय श्रमिकों की जरूरत काफी कम हो गई है। कुछ कामों में ही विभागीय श्रमिकों की जरूरत बनी हुई है। इसको जानते हुए बड़े अधिकारी भी श्रमिक कहां काम कर रहे हें इसकी निगरानी नहीं करते। इसी का फायदा नेताओं को भी मिला हुआ है। बड़े नेताओं के यहां पीडब्ल्यूडी के कई श्रमिक सालों से ड्यूटी बजा रहे हैं।

श्रमिकों का सबसे ज्यादा उपयोग सत्ता पक्ष के बडे नेता ही करते रहे हैं। इसके अलावा सांसद एवं विधायकों के बंगले में भी पीडब्ल्यूडी के श्रमिक ड्यूटी बजाने का काम कर रहे हैं। एक-एक बंगले में कई श्रमिकों की ड्यूटी लगाई गई है। जो कि बागवानी के साथ ही अन्य कामों में संलग्र है। जिसका पूरा खर्चा हर महीने सालों से पीडब्ल्यूडी विभाग उठा रहा है। पीडब्ल्यूडी के श्रमिकों का शोषण कब थमेगा इसको लेकर भी अनिश्चितता व्याप्त है।

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